Friday, July 15, 2016

तुम्हारे साथ आजकल



तुम्हारे साथ आजकल
तुम्हारे साथ आजकल, यूँ हर जगह रहता हूँ मैं

हद से ज्यादा सोचू तुम्हें, बस यहीं सोचता हूँ मैं


पता नहीं हमारे दरमियान, यह कौनसा रिश्ता है

लगता है के सालों पुराना, अधूरा कोई किस्सा है


तुम्हारी तस्वीरों में मुझे, अपना साया दिखता है

महसूस करता है जो यह मन, वहीं तो लिखता है


तुम्हारी आवाज़ सुनने को, हर पल बेक़रार रहता हूँ

नहीं करूँगा याद तुम्हें मैं, खुद से हर बार कहता हूँ


नाराज़ ना होना कभी, बस यहीं एक गुज़ारिश है

महकी हुई इन साँसों की, साँसों से सिफ़ारिश है


बदल जाएं चाहे सारा जग, पर ना बदलना तुम कभी

ख़्वाबों के खुशनुमा शहर में, मिलने आना तुम कभी ।



तुम्हारे साथ आजकल

Wednesday, July 13, 2016

Poem -हिसाब क्या रखें


हिसाब क्या रखें



समय की इस अनवरत 


बहती धारा में .. 


अपने चंद सालों का


हिसाब क्या रखें .. !! 

जिंदगी ने दिया है जब इतना 


बेशुमार यहाँ .. 


तो फिर जो नहीं मिला उसका 


हिसाब क्या रखें .. !! 

दोस्तों ने दिया है इतना 


प्यार यहाँ .. 


तो दुश्मनी की बातों का


हिसाब क्या रखें .. !! 

दिन हैं उजालों से इतने 


भरपूर यहाँ .. 


तो रात के अँधेरों का


हिसाब क्या रखे .. !! 

खुशी के दो पल काफी है


खिलने के लिये .. 


तो फिर उदासियों का


हिसाब क्या रखें .. !! 

हसीन यादों के मंजर इतने हैं 


जिंदगानी में .. 


तो चंद दुख की बातों का


हिसाब क्या रखें .. !! 

मिले हैं फूल यहाँ इतने 


किन्हीं अपनों से .. 


फिर काँटों की चुभन का 


हिसाब क्या रखें .. !! 

चाँद की चाँदनी जब इतनी


 दिलकश है .. 


तो उसमें भी दाग है 


ये हिसाब क्या रखें .. !! 

जब खयालों से ही पुलक 


भर जाती हो दिल में .. 


तो फिर मिलने ना मिलने का 


हिसाब क्या रखें .. !! 

कुछ तो जरूर बहुत अच्छा है 


सभी में …….


फिर जरा सी बुराइयों का


 हिसाब क्या रखें… !!



Poem -हिसाब क्या रखें