Monday, July 28, 2014

Poems - आहिस्ता चल ज़िन्दगी

आहिस्ता चल ज़िन्दगी,

अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,

कुछ दर्द मिटाना बाकी है,

कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है;


रफ्तार में तेरे चलने से

कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ;

रूठों को मनाना बाकी है,

रोतों को हसाना बाकी है ;


कुछ हसरतें अभी अधूरी है,

कुछ काम भी और ज़रूरी है ;

ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है ;


कुछ रिश्ते बनके टूट गए,

कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;

उन टूटे-छूटे रिश्तों के

ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;


तू आगे चल में आता हुँ,

क्या छोड़ तुजे जी पाऊंगा ?

इन साँसों पर हक है जिनका,

उनको समझाना बाकी है ;


आहिस्ता चल जिंदगी,

अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है । 



Poems - आहिस्ता चल ज़िन्दगी