Saturday, April 23, 2016

Poem - गायब


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सावन की पुरवईया गायब ..पोखर,ताल, तलईया गायब…!




कच्चे घर तो पक्के बन गये.. हर घर से आँगनइया गायब…!


सोहर, कजरी ,फगुवा भूले.. बिरहा नाच नचईया गायब…!


नोट निकलते ए टी म से….पैसा , आना ,पईया गायब…!


दरवाजे पर कार खड़ी हैं.. बैल,, भैंस,,और गईया गायब…!


सुबह हुई तो चाय की चुस्की.. चना-चबैना ,लईया गायब…!


भाभी देख रही हैं रस्ता…. शहर गए थे, भईया गायब…।




Poem - गायब

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