सावन की पुरवईया गायब ..पोखर,ताल, तलईया गायब…!
कच्चे घर तो पक्के बन गये.. हर घर से आँगनइया गायब…!
सोहर, कजरी ,फगुवा भूले.. बिरहा नाच नचईया गायब…!
नोट निकलते ए टी म से….पैसा , आना ,पईया गायब…!
दरवाजे पर कार खड़ी हैं.. बैल,, भैंस,,और गईया गायब…!
सुबह हुई तो चाय की चुस्की.. चना-चबैना ,लईया गायब…!
भाभी देख रही हैं रस्ता…. शहर गए थे, भईया गायब…।
Poem - गायब
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